शौच जाना एक दैनिक जैविक प्रक्रिया है परन्तु हमारे समाज में ढांचागत सुविधाओं के अभाव में खुले में शौच जाने की पुरानी परम्परा रही है। खुले में शौच जाना निश्चित तौर पर सभी के लिए चाहे वो स्त्री हो या पुरूष, एक हानिकारक प्रक्रिया है और इससे फैलने वाला प्रदूषण समाज के प्रत्येक नागरिक पर बराबरी से प्रभाव डालता है। किन्तु समाजिक संरचना और ढांचे के कारण महिलाओं और किशोरियों पर इसका प्रभाव ज्यादा नकारात्मक है। दिनांक 30.6.2017 को बेलवां, ब्लाक बिसंवां, जिला सीतापुर के प्रधान की पुत्री जब सुबह 6.00 बजे शौच के लिए गयी तो उस समय गांव के ही कुछ युवकों ने बलात्कार के बाद उसकी हत्या कर दी। इसी प्रकार रामगढ़, ब्लाक अछल्दा, जनपद औरैया में एक औरत की प्रातः शौच के दौरान गांव के युवकों द्वारा ही बलात्कार किया गया। पुवाया, शाहजहांपुर में भी जब किशोरी सुबह शौच के लिए गयी उसके बाद उसका भी खेत में बलात्कार किया गया। इस तरीके केी एक नही अनेक घटनाएं हैं और बलात्कार को हिंसा का बेहद घिनौना रूप है परन्तु बलात्कार से पूर्व की जाने वाली घटना जैसे छेड़खानी, छीटाकशी आदि हिंसा के आरम्भिक रूप तो अधिकतर महिलाएं व किशोरि